अकेला

हैरतअंगेज़ घटनायें या तो वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यास में होती थीं, या दक्षिण भारत की फिल्मों में होती हैं। और अगर हक़ीकत में आपको माथे पर बल डाल देने वाली घटनाएं देखनी-सुननी हों तो उल्हासनगर (Ulhasnagar) आइये। महाराष्ट्र के ठाणे जिले के उपनगर उल्हासनगर में एक पेशेवर पॉकेटमार (Professional Pickpocket) ने सरकारी नाले पर ही कब्ज़ा (Encroachment on Civic Sewer) कर लिया है। कोर्ट ने आदेश भी दिया है कि नाले को पॉकेटमार के चंगुल से मुक्त कराइये लेकिन महापालिका, पुलिस, नेता, समाजसेवक किसी की हिम्मत नहीं कि नाले को खुलवा सके।

4 जुलाई 2022 को शिवसेना नगरसेवक राजेंद्रसिंह भुल्लर उर्फ़ महाराज (Shivsena Corporator Rajendrasingh Bhullar alias Maharaj) ने पुनः उल्हासनगर महापालिका आयुक्त (Commissioner Ulhasnagar Municipal Corporation) को पत्र लिखकर नाला खुलवाने की विनती की है। चन्दर बाबलानी उर्फ़ चन्दर पॉकेटमार (Chander Bablani alias Chander Pocketmaar) ने शहर के जिस भूभाग (यू.नं-2, सीट नं-81, उल्हासनगर-1) पर नाले पर कब्ज़ा किया है वह भुल्लर महाराज के वार्ड में पड़ता है।

भुल्लर महाराज

पत्र के अनुसार वर्ष 1997 में चन्दर पॉकेटमार ने सुनियोजित तरीके से 14 फुट चौड़े और 150 फुट लंबे नाले को पाट लिया। अब उस पर वह चेतन पार्किंग नाम से वाहन पार्किंग का धंधा करता है। भुल्लर महाराज ने सरकार से शिकायतें कीं, महापालिका की सभा में बार- बार मुद्दा उठाया। महापालिका के रिकॉर्ड में है कि वह सरकारी नाला है। महापालिका ने 6 जनवरी 1998 को प्रपत्र (क्रमांक-उमपा/नरवि/सामा/242/90/04) जारी कर माना कि नाला सरकारी है। पॉकेटमार इस प्रपत्र/निर्णय के विरुद्ध न्यायालय चला गया और माननीय न्यायालय ने महापालिका के इस निर्णय पर स्थगन आदेश दे दिया। भुल्लर महाराज फिर भी इसके पीछे लगे रहे। न्यायालय का स्थगन हटने के बाद महापालिका ने आदेश (12 अगस्त 2002, क्रमांक-उमपा/टीपीडी/सामान्य/242/90/291 और 29 अगस्त 2002/क्रमांक-उमपा/साबांवि/164) दिया कि नाला खोला जाये। महापालिका ने 30 अगस्त 2002 को पुलिस सुरक्षा की मांग कर 1 सितम्बर 2002 से नाला खुलवाना शुरू किया। इस बीच भारी बारिश होने जाने से नाला खुलवाने में व्यवधान आ गया। चन्दर पॉकेटमार ने इसी का फायदा उठाया और नाले को फिर पाट लिया। उसने कुछ फर्जी डॉक्युमेंट्स भी बनवा लिए कि नाले की ज़मीन उसकी है।

भुल्लर महाराज हार नहीं माने। चन्दर पॉकेटमार से नाले को मुक्त कराने के लिए लड़ते रहे। तब के महापालिका आयुक्त बी. आर. पोखरकर (Then UMC Commissioner B.R. Pokharkar) ने 17 अगस्त 2002 को फिर आदेश (क्रमांक- उमपा/टीपीडी/सामान्य/242/90/29) दिया कि नाला खोला जाए। और शिवसेना शाखा प्रमुख रहमत शेख (अब मृत) ने उल्हासनगर न्यायालय में याचिका दायर की। न्यायालय ने 3 अप्रैल 2014 को आदेश दिया कि चन्दर पॉकेटमार अपने ख़र्चे से खुद नाला खोल दे। न्यायालय के आदेश पर महापालिका प्रशासन ने फिर 29 अगस्त 2002 को उल्हासनगर-1 पुलिस को पत्र लिखकर पुलिस सुरक्षा की मांग की। 1 सितम्बर 2002 को नाला खुलवाने की तिथि निश्चित हुई थी। चन्दर पॉकेटमार का पुलिस पर इतना प्रभाव है कि पुलिस ने महापालिका को सुरक्षा दी ही नहीं। और आजतक नहीं दी। शिवसेना के युवा नेता विकी भुल्लर (Shiv Sena Yuva Leader Vicky Bhullar) कहते हैं कि वे जल्द पुलिस और महापालिका के खिलाफ कोर्ट की अवमानना (Contempt of Court against Police and Corporation) का केस करेंगे।

उपरोक्त नाले को पाट देने से उल्हासनगर-1 के कई इलाके बारिश में डूब जाते हैं। कल्याण-डोम्बिवली महापालिका आयुक्त विजय सूर्यवंशी (Commissioner KDMC Vijay Suryavanshi) ने एक मीटिंग में माना कि उक्त नाले को पाट देने की वजह से कल्याण के भी कई इलाके बारिश में डूब जाते हैं। लेकिन उल्हासनगर महापालिका आयुक्त राजा दयानिधि (Ulhasnagar Municipal Commissioner Raja Dayanidhi) को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह तो सिर्फ नाम का राजा और दया और निधि है। यह है तो एकदम नल्ला आयुक्त। (Worst Commissioner Raja Dayanidhi).

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