CAA उतना ही संवैधानिक है जितना देश के संविधान में “समाजवाद” शब्द है ।

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विनय सिंह

389 लोग इकट्ठा हुए संविधान बनाने के लिए और उन 389 लोगों ने बहुमत से निर्णय लिया कि भारत हिंदू राष्ट्र ‘नहीं’ होगा (जबकि हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा ही इसीलिए हुआ था कि एक हिंदू राष्ट्र बनेगा, एक मुस्लिम राष्ट्र बनेगा)। जनता ने 389 लोगों के इस फैसले को माना।

फिर 1975 में संसद में 543 सांसदों ने बहुमत से निर्णय लिया कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “पंथ-निरपेक्ष” यानी Secular शब्द जोङा जाएगा। अर्थात् भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होगा। जनता ने 543 लोगों के इस फैसले को माना।

फिर 2019 में संसद में 543 सांसदों ने बहुमत से निर्णय लिया कि देश में Citizenship Amendment Bill (CAA) लाया जाएगा, जिसके अनुसार समुदाय विशेष के लोगों को देश में शरण नहीं दी जाएगी। जनता में से कुछ लोग बसें जला रहे हैं और धमकियां दे रहे हैं कि इसे नहीं मानेंगे। (विरोध करना संवैधानिक है, आगजनी तोङफोङ करना नहीं है)।

कुछ झंडू चिल्लाते हुए देखे गये हैं कि CAA गैर संवैधानिक है। यह ‘संविधान की भावना’ के साथ खिलवाड़ है। वगैरह वगैरह। वो गौर करें।

संविधान क्या है? संविधान की भावना क्या है? संविधान 389 लोगों (जो कि जनता द्वारा चुने हुए भी नहीं थे) द्वारा बनाए गये नियम हैं और संविधान की भावना उन 389 लोगों की भावना है। देश की भावना नहीं है। देश उन 389 लोगों की बपौती नहीं है।

CAA क्या है? CAA की भावना क्या है? CAA 543 लोगों (जो कि जनता द्वारा चुने हुए सांसद हैं) द्वारा बनाया गया नियम है, और CAA उन 543 लोगों की भावना है (उनकी भावना में जनता की भावना निहित है, क्योंकि संविधान ने ही उनको जनता के behalf पर फैसले लेने का अधिकार दिया है)।

ना तो संविधान आसमान से उतरा है और ना CAA आसमान से उतरा है। तो CAA उतना ही संवैधानिक और लोकतांत्रिक है जितना कि संविधान है। उल्टा उससे ज्यादा ही है। आखिर 543 लोग 389 से 154 ज्यादा होते हैं।

CAA उतना ही संवैधानिक है जितना संविधान में “धर्म निरपेक्षता” शब्द है

CAA उतना ही संवैधानिक है जितना देश के संविधान में “समाजवाद” शब्द है (जो 1975 में जोङा गया)।

CAA उतना ही संवैधानिक है जितना AMU, JMI, JNU संवैधानिक है।

CAA उतना ही संवैधानिक है जितना वक्फ बोर्ड और पर्सनल लॉ बोर्ड है।

CAA उतना ही संवैधानिक है जितनी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ संवैधानिक है।

CAA उतना ही संवैधानिक है जितना ‘न्यायपालिका, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका’ संवैधानिक हैं।

CAA उतना ही संवैधानिक है जितना आरक्षण संवैधानिक है।

CAA उतना ही संवैधानिक है जितना लोकतंत्र है।

और अगर कभी संसद में 543 सांसदों द्वारा बहुमत से निर्णय लिया जाए कि भारत के संविधान से “पंथनिरपेक्ष” शब्द हटेगा और इसे “हिंदू राष्ट्र” घोषित किया जाएगा, तो यह भी उतना ही संवैधानिक होगा (सही हो या गलत वो अलग मैटर है, लेकिन संवैधानिक होगा, यही संविधान है, यही लोकतंत्र है)

संविधान की भावना अगर जनता को पसंद नहीं है तो संविधान की भावना जनता की भावना के अनुसार बदली जाएगी। संविधान स्वयं इसकी इजाजत देता है ‘संशोधन’ द्वारा। संविधान अंतिम नहीं है। संविधान जनता के लिए है, जनता संविधान के लिए नहीं है।

नोट : विनय सिंह कल्याण (पूर्व) में रहते हैं। फार्मा कंपनी के मालिक हैं। लेख में विचार और तर्क उनके अपने हैं।

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