धनंजय सिंह

अपहरण और रंगदारी के मामले में दोषी करार दिए गए उत्तर प्रदेश के जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सात साल के कारावास की सजा दी गई है. 6 मार्च को जौनपुर की अपर सत्र कोर्ट ने धनंजय सिंह की सजा का ऐलान किया. एक दिन पहले 5 मार्च को इसी मामले में धनंजय के साथी संतोष विक्रम को भी दोषी ठहराया गया था. उन्हें भी सात साल के कारावास की सजा सुनाई गई है. कोर्ट ने पूर्व सांसद पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. धनंजय सिंह के खिलाफ ये केस 2020 में जल निगम के प्रोजेक्ट मैनेजर ने दर्ज कराया था.

क्या था मामला?
10 मई 2020 को लाइन बाजार थाने में मुजफ्फरनगर निवासी नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने अपहरण, रंगदारी व अन्य धाराओं में केस दर्ज कराया था. IPC की धारा 364, 386, 504 और 120(B) के तहत केस दर्ज किया गया था. केस धनंजय सिंह और उनके साथी विक्रम के खिलाफ किया गया था. शिकायत में बताया गया कि विक्रम दो साथियों के साथ अभिनव का अपहरण कर पूर्व सांसद के आवास पर ले गए थे. जहां धनंजय सिंह पिस्टल के साथ आए और उन्हें धमकाया कि वो कम गुणवत्ता वाली सामग्री का इस्तेमाल करें.

अभिनव ने इनकार किया तो उन्हें गालियां दी गईं और धमकी देते हुए रंगदारी मांगी गई. शिकायत के आधार पर पुलिस ने मामले में FIR दर्ज कर पूर्व सांसद को गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि, बाद में कोर्ट से धनंजय सिंह को जमानत मिल गई थी.

कहानी धनंजय सिंह की…
तारीख़ 17 अक्टूबर 1998. जगह भदोही मिर्ज़ापुर रोड. पुलिस को सूचना मिली कि एक पेट्रोल पंप पर लूट पड़ने वाली है. पुलिस सक्रिय हुई. इसके बाद खबर आई कि लूट की योजना बना रहे 4 लोगों का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया है. कहा गया कि 50 हज़ार का इनामी धनंजय सिंह इस एनकाउंटर में मारा गया.
लेकिन ये पूरा सच नहीं था. धनंजय सिंह जिंदा थे.

लगभग 4 महीने तक अपनी मौत पर खामोश रहे धनंजय सिंह फरवरी 1999 में सामने आए. इसके बाद भदोही फेक एनकाउंटर का सच सामने आया.
लेकिन धनंजय की जगह पुलिस ने किसका एनकाउंटर कर दिया था? जिस दिन पुलिस ने ये एनकाउंटर किया, उसी दिन भदोही में CPM के कार्यकर्ता फूलचंद यादव ने शिकायत की. कहा कि पुलिस जिसे धनंजय सिंह बता रही है, वो उनका भतीजा ओमप्रकाश यादव है.

उन्होंने पुलिस को ये बात बताई, लेकिन पुलिस ने उनकी बात नहीं सुनी. ओमप्रकाश यादव समाजवादी पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे. मुलायम सिंह यादव जो उस समय विपक्ष के नेता थे, उन्होंने राज्य सरकार पर दबाव बनाया. इसके बाद जांच के आदेश दिए गए. मानवाधिकार आयोग की जांच बैठी. बाद में फ़ेक एनकाउंटर में शामिल 30 से ज्यादा पुलिसकर्मियों पर मुक़दमा चला.

टीचर की हत्या में नाम आया!
धनंजय सिंह. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में पैदा हुए. तारीख थी 16 जुलाई 1975. बाद में परिवार यूपी के जौनपुर आ गया. ये बात 1990 की है. महर्षि विद्या मंदिर के एक शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या हो गई. धनंजय उस समय हाईस्कूल में थे. कहते हैं इस मर्डर में धनंजय का नाम आया था. लेकिन पुलिस इस मामले में आरोप साबित नहीं कर पाई.

कहते हैं कि इसी हत्याकांड के बाद धनंजय पर आपराधिक मामलों से जुड़े आरोप लगने शुरू हो गए. इस घटना के दो साल बाद 1992 में जौनपुर के तिलकधारी सिंह इंटर कॉलेज से बोर्ड की परीक्षा दे रहे धनंजय पर एक युवक की हत्या का आरोप लगा. बताया जाता है कि परीक्षा के 3 पेपर धनंजय सिंह ने पुलिस हिरासत में दिए.

धनंजय सिंह लखनऊ में पढ़ाई कर रहे थे। बताते हैं कि 1997 में छात्र राजनीति में पूर्वांचल के ठाकुरों के गुट अचानक सक्रिय हुए, जिनका वर्चस्व बढ़ता चला गया. धनंजय सिंह, अभय सिंह, बबलू सिंह और दयाशंकर सिंह. हालांकि, आपस में इनका कोई रिश्ता नहीं था और ना ही ये सारे किसी एक जिले से थे. लेकिन अलग-अलग जिलों से आए और ‘ठाकुरवाद’ के चलते लखनऊ यूनिवर्सिटी में एक दूसरे के करीबी होते चले गए. गुट बनता चला गया और ये लगातार हावी होते चले गए.

पहले यूनिवर्सिटी में जो गुंडागर्दी होती थी, उसी तरह के मामलो में धनंजय सिंह और बाकी लोगों का नाम आता था. किसी पर गोली चला देना. चाकू मार देना. किसी को उठा लेना. हबीबुल्ला छात्रावास इन्हीं लोगों की वजह से बदनाम था. पत्रकार बताते हैं कि यूनिवर्सिटी में ठीकठाक राजनीति जमने के बाद इन्होंने लखनऊ में दूसरी जगहों पर हाथपांव मारना शुरू किया.

माफिया और रेलवे का ठेका
कहा जाता है कि माफियाओं के लिए रेलवे का ठेका उस समय आमदनी का बड़ा जरिया होता था. रेलवे में स्क्रैप की नीलामी होती थी. ढेर में अंदाजा नहीं होता था कि क्या माल है. रेलवे वाले अंदाजे से कीमत तय करते थे और उस पर बोली लगती थी. माफिया उस बोली को मैनेज करवाते थे और उसके बदले जीटी (गुंडा टैक्स) लेते थे.

जीटी वसूली में नंबर-1 थे लखनऊ चारबाग के रहने वाले अजीत सिंह, जो 2004 में एक एक्सीडेंट में मारे गए. कहते हैं कि अजीत सिंह पूर्वांचल के किसी माफिया को पैर नहीं जमाने देना चाह रहे थे. लेकिन अभय सिंह और धनंजय सिंह किसी तरह शामिल हो गए. धीरे-धीरे अपने पांव जमा लिए. वसूली शुरू कर दी. बाहुबली छात्रनेता अभय सिंह और धनंजय सिंह में दोस्ती हो गई.

लेकिन इसी बीच एक कांड हो गया. 1997 में बन रहे आंबेडकर पार्क से जुड़े लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या हो गई. श्रीवास्तव इंदिरानगर में अपने घर से निकले. मारुति 800 कार से ऑफिस जा रहे थे. सुबह के दस साढ़े दस बजे होंगे. बाइक सवार दो लोगों ने ओवरटेक करते समय फिल्मी अंदाज में उन्हें गोली मारी. इंजीनियर की गाड़ी बाउंड्री से जाकर टकराई और उनकी मौत हो गई. जिन दो लड़कों ने हमला किया था, उसमें धनंजय सिंह नहीं थे. लेकिन इस हत्या में धनंजय सिंह नामजद हुए और उन पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया.

धनंजय सिंह पर हत्या और डकैती समेत 12 मुक़दमे दर्ज हो चुके थे. ऐसे में रेलवे की वसूली का पैसा अभय सिंह के पास आने लगा था. उसी पैसे के बंटवारे को लेकर अभय और धनंजय के बीच अनबन शुरू हुई. इस बीच इन्हीं के बीच का एक लड़का था अभिषेक, जिसका मर्डर हो जाता है. धनंजय सिंह आरोप लगाते हैं कि अभय सिंह ने इस हत्या का बदला नहीं लिया, बल्कि समझौता कर लिया. लेकिन अंदरूनी बात थी रेलवे की वसूली के पैसे को लेकर हो रही गड़बड़ी. वहीं से दोनों के बीच दरार आनी शुरू हो गई थी.

दोनों के बीच मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय वाली स्थिति थी. आमना-सामना हुआ तो गोली चलनी तय है. ये बात 5 अक्टूबर 2002 की है. तब धनंजय सिंह विधायक बन चुके थे. बनारस से गुजरते समय उनके काफिले पर हमला हुआ. इसे बनारस का पहला ‘ओपन शूटआउट’ कहा जाता है. टकसाल सिनेमा के सामने मुठभेड़ हुई. धनंजय सिंह का सामना कभी उनके मित्र रहे अभय सिंह से हुआ. दोनों तरफ से जमकर गोलियां चलीं. धनंजय के गनर और उनके सचिव समेत 4 लोग घायल हुए. धनंजय ने अभय सिंह के खिलाफ FIR भी दर्ज कराई थी.

राजनीतिक सफर
जौनपुर के रहने वाले धनंजय सिंह यहीं से चुनाव लड़ना चाहते थे. उस समय जौनपुर में एक बाहुबली नेता थे. नाम था विनोद नाटे. उन्हें मुन्ना बजरंगी का गुरु कहा जाता है. वो चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन एक रोड एक्सीडेंट में उनकी जान चली गई. कहते हैं कि धनंजय सिंह ने विनोद नाटे के समर्थकों से हाथ मिला लिया. फिर 2002 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद अगला चुनाव नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड की टिकट पर लड़ा. फिर से जीत गए. लेकिन एक साल बाद ही उन्होंने मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने उन्हें टिकट दे दिया. धनंजय सिंह जीते और पहली बार सांसद बने. लेकिन दो साल में ही मायावती ने धनंजय को पार्टी से निकाल दिया. ये कहते हुए कि वो पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे.

इसके बाद तो मानो धनंजय सिंह की किस्मत रूठ गई. उन्होंने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. फिर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा उसमें भी हार गए.

तीन शादियां
धनंजय सिंह ने तीन शादियां की हैं. पहली पत्नी की मौत शादी के 9 महीने बाद ही संदिग्ध हालात में हो गई थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मीनू सिंह पटना जिले की रहने वाली थीं. धनंजय सिंह के लखनऊ स्थित गोमती नगर वाले घर में उनकी लाश मिली थी. इसके बाद धनंजय ने डॉक्टर जागृति सिंह से दूसरी शादी की. जागृति सिंह, हाउस हेल्पर की हत्या के आरोप में नवंबर, 2013 में गिरफ़्तार हुईं. इस मामले में धनंजय सिंह पर सबूत मिटाने के आरोप लगे. बाद में दोनों का तलाक हो गया.

धनंजय सिंह ने साल 2017 में तीसरी शादी दक्षिण भारत के बड़े कारोबारी परिवार की लड़की श्रीकला रेड्डी से पेरिस में की.

जब हटाई गई Y श्रेणी सुरक्षा
साल 2018 तक कई सालों से धनंजय सिंह को Y श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी. इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका में कहा गया था कि पूर्व सांसद धनंजय सिंह पर हत्या के 7 मामलों सहित कुल 24 मुकदमे चल रहे हैं. Y श्रेणी की सुरक्षा मिलने के बाद भी उनके खिलाफ 4 आपराधिक मामले दर्ज हुए. ऐसे में आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को ब्लैक कैट कमांडो वाली उच्च स्तरीय सुरक्षा मुहैया कराना गलत है.

इसके बाद हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की थी. कहा था कि आपराधिक प्रवृत्ति के नेता को इस स्तर की सुरक्षा कैसे मुहैया कराई जा रही है. राज्य सरकार ऐसे नेता की जमानत निरस्त कराने के लिए क्या कदम उठाने जा रही है. कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से भी जवाब तलब किया था. 25 मई 2018 को सरकार की तरफ़ से जवाब देते हुए सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने धनंजय सिंह को दी गई ‘वाई-सिक्योरिटी’ हटा ली है.

अब इन हत्याओं में आया नाम
बागपत जिला जेल में बंद मुन्ना बजरंगी की जुलाई 2018 में गोली मारकर हत्या कर दी गई. मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह ने धनंजय सिंह और प्रदीप सिंह पर हत्या की साजिश का आरोप लगाया था. सीमा सिंह ने तहरीर में कहा था कि बागपत जेल में हुई उनके पति की हत्या साल 2016 में हुए पुष्पांजलि सिंह डबल मर्डर और साल 2017 में हुए तारिक हत्याकांड की पुनरावृत्ति लग रही है. जिसे जौनपुर के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद धनंजय सिंह, मुन्ना बजरंगी के पूर्व सहयोगी प्रदीप सिंह, प्रदीप के पिता रिटायर्ड डीएसपी जी.एस. सिंह और उनके सहयोगी राजा ने अंजाम दिया है.

5 जनवरी 2021 को लखनऊ के विभूति खंड इलाके में दो गुटों के बीच गैंगवार हुआ. इस दौरान मऊ के नेता अजीत सिंह उर्फ लंगड़ा की गोली मारकर हत्या कर दी गई. अजीत सिंह बाहुबली मुख्तार अंसारी का करीबी था. वह मऊ के मोहम्मदाबाद गोहाना का ब्लॉक प्रमुख रहा था. वारदात के दौरान अजीत सिंह का साथी मोहर सिंह और फूड सप्लाई कंपनी का एक कर्मचारी प्रकाश घायल हुए थे.

अजीत सिंह की हत्या में धनंजय सिंह का नाम सामने आया. इसके बाद लखनऊ पुलिस उनकी तलाश में जुट गई. 25 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया. लखनऊ की कोर्ट से गैर जमानती वारंट भी जारी करवा लिया. मुठभेड़ में मारे गए शूटर गिरधारी ने पुलिस के सामने पहले बयान दिया था कि अजीत की हत्या का पूरा प्लान धनंजय सिंह का था.

पुलिस को नहीं मिले, लेकिन क्रिकेट खेलते दिखे
दो साल पहले धनंजय सिंह का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ. इसमें वो एक क्रिकेट टूर्नामेंट के उद्घाटन के मौके पर क्रिकेट खेलते नजर आए थे. तब सपा ने बीजेपी पर माफिया को संरक्षण देने का आरोप लगाया था. पुलिस रिकॉर्ड में धनंजय सिंह फरार थे. पुलिस ने उन पर 25 हजार रुपये का इनाम रखा था. लेकिन वो तो सरेआम घूम रहे थे. बस पुलिस को नहीं मिल रहे थे.

लोकसभा चुनाव में उतरने की तैयारी थे
अदालत का ये फैसला चुनाव के लिहाज से भी धनंजय सिंह के लिए बड़ा झटका है. वो जौनपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. पहले चर्चा थी कि वो जेडीयू के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं. लेकिन नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने से ये संभावना खत्म हो गई. बाद में बीजेपी ने कृपाशंकर को जौनपुर से टिकट दे दिया. हालांकि इसके बाद भी धनंजय ने चुनाव लड़ने का इरादा पक्का किया हुआ था. वो सोशल मीडिया पर काफी उत्साहित भी लग रहे थे. बीजेपी के उम्मीदवारों की पहली लिस्ट की घोषणा होने के बाद धनंजय सिंह ने पोस्ट किया था, “साथियो, तैयार रहिए. लक्ष्य बस एक लोकसभा 73, जौनपुर.”

उनके समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने की भी चर्चा चली. लेकिन इसी बीच उन्हें अपहरण मामले में उन्हें दोषी करार दिया गया. उनके खिलाफ जो धाराएं लगी थीं उनमें 10 साल तक की सजा का प्रावधान है. 2 साल की भी सजा होती तो वो चुनाव नहीं लड़ पाते. अब तो 7 साल की जेल हो गई है.

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