सुरेंद्र प्रताप तिवारी

अकेला

जनवरी 2024 के महीने में समस्त विश्व राम मय हो गया था। भारतवासी अभी भी हैं। ऐसे में श्रीराम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा में लगे सुरेंद्र प्रताप तिवारी को तो होना ही था। सुरेंद्र प्रताप तिवारी ने आँखों में आंसू भर श्रीराम लला से मन्नत माँगी और श्रीराम का चरणामृत माँ के मुंह में डाला। फिर चमत्कार हो गया। चरणामृत मुंह पड़ते ही सुरेंद्र प्रताप तिवारी की माँ को प्रभु श्रीराम ने अपने लोक बुला लिया। राम लोक।

12 अप्रैल 1964 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में जन्मे सुरेंद्र प्रताप तिवारी वर्तमान में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा में तैनात हैं। वे श्रीराम जन्मभूमि परिसर के चीफ ऑफिसर [सीओ] हैं। सुरेंद्र प्रताप तिवारी वर्ष 2000 से ही अयोध्या में बतौर डिप्युटी सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस [डीएसपी] तैनात थे। उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए सरकार ने उन्हें श्रीराम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा की जिम्मेदारी दे दी। 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। सुरेंद्र प्रताप तिवारी अहर्निश सुरक्षा व्यवस्था के बारे में सोचते थे। श्रीराम जन्मभूमि परिसर ही उनका खटिया और बिछौना हो गया था। रात की नींद पता नहीं कहाँ चली गई थी। समस्त जगत के प्राणी जनवरी महीने में राम मय हो गए थे। सुरेंद्र प्रताप तिवारी तो चौबीस घंटे श्रीराम लला की आँखों के सामने थे। श्रीराम लला उनकी आँखों के समक्ष थे। ऐसे में सुरेंद्र प्रताप तिवारी को तो राम मय होना ही था।

राम नाम की औषधि खरी नीयत से खाय, अंग रोग व्यापे नहीं महारोग मिट जाय।’ [प्रभु श्रीराम का नाम लिखना, बोलना, भवसागर से पार तो लगाता ही है साथ ही यह भक्तों को समस्त प्रकार के दैहिक एवं भौतिक तापों से मुक्ति प्रदान करता है]. सुरेंद्र प्रताप तिवारी तो प्रभु श्रीराम की भक्ति में इतने लीन हो गए कि उनके मुख से हमेशा जय सियाराम निकलता है। सुरेंद्र प्रताप तिवारी की बुज़ुर्ग माँ प्रतापगढ़ से अयोध्या आई हुई थीं। एक शाम सुरेंद्र प्रताप तिवारी को सन्देश मिला कि माँ की तबियत बहुत खराब हो गई है। वे श्रीराम मंदिर परिसर से तुरंत माँ के पास पहुंचे। सच में माँ की हालत नाज़ुक थी। शायद उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था। वे दर्द से कराह रही थीं। डॉक्टर अपने हिसाब से उनका इलाज़ कर रहा था। माँ के कराहने की आवाज़ सुरेंद्र प्रताप तिवारी को असह्य थी। वे वहां से भागे। सीधे श्रीराम लला के सम्मुख आकर खड़े हो गए। आँखों में आंसू लिए उन्होंने श्रीराम से मन्नत माँगी कि हे परमपिता परमेश्वर, हे जगत के पालन हार, मेरी माँ बहुत कष्ट में हैं। माँ का कष्ट, कराहने की ध्वनि मुझसे सुनी नहीं जा रही है। माँ को या तो इस पार कर दे या उस पार। श्रीराम लला का चरणामृत लेकर वे भागे। अस्पताल आये। माँ के मुंह में चरणामृत डाला। फिर क्षण भर में चमत्कार हो गया। जैसे मां श्रीराम लला के चरणामृत का ही इंतज़ार कर रही थीं। वे राम लोक चली गईं। श्रीराम ने अपने भक्त की करुण पुकार सुन ली थी।

सुरेंद्र प्रताप तिवारी इतने राम मय हो गए हैं कि उन्होंने अपने दोनों पुत्रों का नाम सीताराम रख दिया है। दोनों पुत्रों को सीताराम कहकर सम्बोधित करते हैं। एबीआई के ऐसा क्यों पूछने पर सुरेंद्र प्रताप तिवारी कहते हैं – ‘रामचंद्र के चरित सुहाए, कलप कोटि लगि जाहिं न गाए।’ [रामचंद्र के सुन्दर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाये नहीं जा सकते]. पापी अजामिल ने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा था। अंत समय में वह नारायण-नारायण पुकार कर श्रीहरि के लोक पहुँच गया। इसलिए मैं भी सीताराम-सीताराम सम्बोधन कर पुत्रों को पुकारता हूँ।

सुरेंद्र प्रताप तिवारी कहते हैं कि वे इतने भाग्यशाली हैं कि संत, महात्मा, नेता, अभिनेता, मिनिस्टर, वीआइपी, वीवीआइपी भी उनकी इज़ाज़त के बगैर प्रभु श्रीराम लला का दर्शन नहीं कर सकते। ये राम की ही कृपा है कि उन्होंने इस पुण्य कार्य के लिए उन्हें चुना है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पुलिस विभाग में बड़े ओहदे के एक अधिकारी ने सुरेंद्र प्रताप तिवारी से कहा कि तिवारी जी मैं आपका टांसफर किसी ‘अच्छी जगह’ कर देता हूँ। आप अपनी पसंद की जगह बताइये। तिवारी ने कहा- श्रीराम जन्मभूमि परिसर से अच्छी जगह तो विश्व में कहीं नहीं है। मैं यहीं से रिटायर होना चाहता हूँ।

‘राम ब्रह्म परमारथ रूपा।’ [ब्रह्म ने ही परमारथ के लिए राम रूप धारण कर लिया है]।

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